मंगलवार, 3 नवंबर 2009

2009 के नोबेल पुरस्कार विजेता

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वर्ष 2009 के नोबेल पुरस्कार विजेताओं में से कई नाम शायद आगे आने वाले वर्षों में लंबे समय तक याद किये जाते रहेंगे। भौतिकी के पुरस्कार विजेता 'द मास्टर्स ऑफ लाइटÓ तो पहले ही इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं, लेकिन मेडिसिन और रसायन के क्षेत्र में जो लोग सम्मानित किये गये हैं, उनकी उपलब्धियां भी ऐसी हैं कि उन्हें भी भुलाया नहीं जा सकेगा। गर्व की बात यह है कि इनमेें एक भारतीय नाम भी शामिल है। शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया नाम तो भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए चुना ही गया है, इसलिए वह तो भविष्य में चर्चा का विषय रहेगा ही, साहित्य के लिए चुनी गयी लेखिका भी शायद इसलिए याद की जाएगी कि कम्युनिस्ट त्रासदी का चित्रण करने के लिए नोबेल जैसा सम्मान पाने वाली शायद वह अंतिम लेखक या लेखिका होगी।

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ऑफ वर्ष 2009 के नोबेल पुरस्कारों की घोषण हो चुकी है। भौतिकी, चिकित्सा व रसायन में तीन-तीन लोगों को पुरस्कार में शमिल किया गया है। यह तीनों ही पुरस्कार निश््चय ही अपने क्षेत्र के श्रेष्ठïतम लोगों को दिये गये हैं, जिनकी खोजों ने मानवता को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाया है या जिससे भविष्य में उल्लेखनीय लाभ पहुंच सकता है। साहित्य का पुरस्कार एक अल्पज्ञात जर्मन लेखिका को प्राप्त हुआ है, लेकिन उसे लेकर भी कोई विवाद नहीं है। हां, शांति का नोबेल पुरस्कार इस बार भी निश्चय ही विवाद का विषय बना है, लेकिन इस चयन के लिए उस स्वीडिश चयन समिति की सराहना की जानी चाहिए, जिसने वर्तमान की उपलब्धियों से अधिक भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर पुरस्कार के योग्य व्यक्ति का चयन किया है।भौतिकी (फिजिक्स) का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले वैज्ञानिकों को 'द मास्टर्स आफ लाइटÓ की संज्ञा दी गयी है। इनमें शामिल हैं चाल्र्स कुएन काओ। शंघाई (चीन) में जन्में काओ की ही खोज का कमाल है कि आज अंतर्राष्टï्रीय संचार की गति इतनी तेज हो गयी है। स्टैंडर्ड टेली कम्युनिकेशन लेबोरेटरी (यू.के.) में कार्यरत काओ की सबसे बड़ी चिंता थ्ी कि प्रकाश को लंबी दूरी के संचार के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए। ग्लास फाइबर रोशनी ले जा सकते हैं, यह तो पहले से पता थ, लेकिन पहले की स्थिति यह थी कि 20 मीटर जाने पर ही प्रकाश की 90 प्रतिशत क्षमता समाप्त हो जाती थी। पहले उन्होंने लक्ष्य रखा कि एक किलोमीटर तक प्रकाश को कैसे ले जाया जाए, लेकिन अब तो पूरी दुनिया का संचार इन ऑप्टिकल फाइबर केबिलों पर टिक गया है। ऑप्टिकल फाइबर इंटरनेट की तो रीढ़ है। वेब पेजज को लेना हो, ई-मेल करना हो, चैटिंग करनी हो या यू ट्ïयूब वीडियोज का आनंद लेना हो, यह सब ऑप्टिकल फाइबर के प्रकाश संचार बिना संभव नहीं था। और इन तारों से गुजरने वाली वीडियो छवियां (फोटोज) ज्यादा सीसीडी या उस जैसी डिवाइस से लैस कैमरों से आती हैं। फोटोग्राफिक फिल्में इसी कमाल के चलते इतिहास की वस्तु बन गयी हैं। मोबाइल फोन के कैमरे ही नहीं, हबल जैसे अंतरिक्ष में घूमने वाले विशाल कैमरों के शानदार चित्र भी इसी तकनीक से प्राप्त होते हैं। अंतरिक्ष यानों में लगे कैमरे भी सीसीडी आधारित ही होते हैं। आज करीब एक अरब किलोमीटर लंबी ऑप्टिकल फाइबर केबिल मानव की संचार सेवा में लगी हैं। इतनी बड़ी केबिल जिससे पूरी धरती को करीब 25 बार लपेटा जा सकता है।भौतिकी के पुरस्कार की आधी रकम अकेले काओ को दी गयी है। दसरे दो वैज्ञानिक हैं अमेरिका में जन्में और वहीं की बेल लेबोरेटरी में कार्यरत बिलियर्ड स्टर्लिंग बायल और जार्ज एलवुड स्मिथ। इन दोनों ने 'इमेजिंग सेंसरÓ सी.सी.डी. (चाज्र्ड कपल्ड डिवाइस) तैयार करने में कमाल दिखाया है। इनकी खोजों से ही यह संभव हुआ कि मोबाइल फोन में भी कैमरे आ गये। 'इलेक्ट्रॉनिक मेमोरीÓ को बेहतर बनाने तथा इलेक्ट्रॉनिक ढंग से फोटो लेने (इलेक्ट्रॉनिक कैप्चरिंग मेमोरी) में इन दोनों ने क्रांतिकारी भूमिका अदा की। पुरस्कार की आधी रकम इन दोनों में बराबर-बराबर बांटी गयी है।चिकित्सा विज्ञान (मेडिसिन एवं फिजियोलॉजी) का पुरस्कार भी तीन लोगों में बांटा गया है। ये तीनों अमेरिका में कार्यरत हैं, जिनमें दो महिलाएं हैं, जो अमेरिका में ही पैदा हुई हैं। इनमें एलेजाबेथ ब्लैकबर्न यूनिवर्सिटीकेलिफोर्निया में और कैरोल डब्लू ग्रेइडर बाल्टीमोर के जान हापकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में पढ़ाती हैं। तीसरे जैक डब्लू शेस्टाक की पैदाइश लंदन की है, लेकिन कार्यरत अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हैं। यह रोचक है कि चिकित्सा में पहली दो महिलाओं को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।इनकी खोज भी बड़ी रोचक है। यह तो सभी जानते हैं कि कोशिकाएं जब विभाजित होती हैं, तो उनके गुण सूत्र (क्रोमोजोम) भी दो जोड़ों में विभाजित हो जाते हैं। लेकिन इन विभाजनों के दौरान कभी कोई गलती नहीं होती और वे खराब भी नहीं होते। इन तीनों ने यह पता लगाया कि गुण सूत्रों की प्रतिक्रति कैसे बनती है और कैसे उनसे कोई गड़बड़ी नहीं होने पाती। इन लोगों ने गुण सूत्रों के उस रसायन का पता लगाया, जो उनके विभाजन पर नजर रखता है। जैसे जूते के फीतों के सिरे पर प्लास्टिक की एक कैप लगी रहती है, जो उस सिरे को बिखरने से बचाए रखती है, वैसे ही गुण सूत्रों के सिरों पर एक रासायनिक संरचना होती है, जो पूरे गुण सूत्र पर नजर रखती है और उसके विभाजन को नियंत्रित करती है। यह खोज बहुत महत्वपूर्ण है। इससे मनुष्य के वृद्ध होने के कारणों, कैंसर तथ स्टेम कोशिकाओं के बारे में और जानकारी जुटाई जा सकेगी। इससे मनुष्य के स्वस्थ दीर्घायुष्य के चिकित्सकीय उपाय किये जा सकेंगे। तीसरा रसायन का नोबेल पुरस्कार विज्ञान व मनुष्यता के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, यह भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले तीन वैज्ञानिकों में एक भारतीय नाम भी है। वेंकटरमन रामकृष्णन आज भले ही अमेरिकी नागरिक हैं, लेकिन भारत से उनके संबंध जीवित हैं। 1952 में तमिलनाडु के धार्मिक शहर चिदंबरम में जन्में रामकृष्णन ने विज्ञान में स्नातक (बी.एस.सी.) की उपाधि महाराजा सयाजीराव विश््ïवविद्यालय, बड़ौदा से प्राप्त की। अभी वह तीन वर्ष के ही थे कि तमिलनाडु से उनके पिता गुजरात के बड़ौदा में आ गये। उनके पिता सी.वी. रामकृष्णन व माता राजलक्ष्मी भी जैव वैज्ञानिक थे। वस्तुत: सी.वी. रामकृष्णन ने ही बड़ौदा की महाराज सयाजीराव यूनिवर्सिटी में 1955 में बायोकेमेस्ट्री डिपार्टमेंट की स्थापना की। इस समय सी.वी. रामकृष्णन सियेटेल में हैं, लेकिन वेंकटरमन के बड़ौदा और तमिलनाडु से संबंध अब भी बने हुए हैं। इसलिए उनकी उपलब्धि पर भारतीयों का भी गर्वित होना स्वाभाविक है। उनके साथ इस पुरस्कार में समान रूप से भागीदार दो अन्य वैज्ञानिकों में से एक अदा. इ. योनाथा इजरायल की हैं और वहीं की विजमन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस मेंजाता था। काम मुश्किल जरूर था, लेकिन इसकी राह दिखायी अदा.इ. योनाथा ने, फिर तो वेंकटरमन और स्टीट्ïज जैसे लगनशील वैज्ञानिकों ने इस कार्य को अंजाम तक पहुंचा दिया। इनतीनों कार्यरत हैं और दूसरे थामस ए. स्टीट्ïज अमेरिका के हैं और येल विश््ïवविद्यालय में कार्यरत हैं। इन तीनों ने एक ऐसे मुश्किल कार्य को कर दिखाया है, जिसे पहले प्राय: असंभव माना ने प्रकृति के एक ऐसे अज्ञात रहस्य को सुलद्ब्रााया है, जिसकी भविष्य में असीमित संभावनाएं हैं।प्रकृति में जितने जीव हैं -माइक्रोव्स, पौधे या जीव जंतु सभी 'रिबोजोमÓ पर निर्भर करते हैं। यह रिबोजोम प्रत्येक जीवित कोशिका का एक अनिवार्य एवं जटिल तत्व है। यह गुण सूत्रों पर स्थित 'जीनोंÓ में अंकित सूचनाओं (ब्लू पिं्रट) के आधार पर उन प्रोटिनों के निर्माण का कार्य करता है, जिन पर यह पूरा जीवन निर्भर है। वास्तव में यह रिबोजोम एक अत्यंत जटिल आणविक (मालिक्यूलर) मशीन है, जो सैकड़ों हजारों परमाणुओं से मिलकर बनी है। इन तीनों वैज्ञानिकों ने इस 'रिबोजोमÓ का परमाणविक मॉडल तैयार कर दिया। यानी यह बता दिया कि इसके हजारों हजार परमाणु कहां पर किस तरह स्थित है। इससे यह पता लगाने में मदद मिली की ये रिबोजोम कैसे इन असंख्य प्रोटीनों का निर्माण करते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एंटीबायोटिक दवाइयां बैक्टीरिया की कोशिका के भीतर स्थित रिबोजोम पर ही हमला करते हैं। अब इस अध्ययन से यह भी पता चल गया कि एंटीबायोटिक कैसे काम करते हैं। इस रिबोजोम के परमाणुओं के स्थान का कैसे पता लगाया जाए, यह बड़ी समस्या थी। 1980 में योनाथा ने रिबोजोम की एक बड़ी इकाई का क्रिस्टल बनाने में सफलता प्राप्त की। इसका एक्स-रे 'स्नैपशॉटÓ लिया गया। यह रिबोजोम की गुत्थी सुलद्ब्रााने की दिशा में पहला कदम था। लेकिन दूसरा कदम उठाने में योनाथ को 20 वर्ष लग गये, जब एक एटम का चित्र लिया जा सका। वेेंकटरमन रामकृष्णन 'मेडिकल रिसर्च कौंसिल लेबोरेटरी ऑफ मालिक्यूलर बायोलॉजी, कैंब्रिजÓ (यू.के.) में कार्यरत थे। उन्होंने अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के एक पोस्ट डाक्टोरल फिलो के रूप में रिबोजोम पर काम करना शुरू किया। उन्होंने रिबोजोम की छोटी इकाईयों (स्मॉल सबयूनिट्ïस) की मैपिंग शुरू की। उन्होंने भी एक्स-रे की सघन किरणों (इंटेंस बीम ऑफ एक्स-रे) की मदद से यह काम शुरू किया। इस क्रम में उनकी एक सबसे महत्वपूर्ण खोज यह थी कि रिबोजोम जो भी प्रोटीन बनाता है, उसमें से प्रत्येक प्रोटीन केवल 20 एमीनो एसिड्ïस के विभिन्न संयोजनों द्वारा बनते हैं। इस बीच स्टीट्ïज ने यह खोज कर ली कि एक्स-रे फोटोज की व्याख्या कैसे की जाए या उसे समद्ब्राा कैसे जाए। उन्होंने यह भी पता लगा लिया कि दो एमीनो एसिड्ïस के बीच के रासयनिक संबंध कैसे बनते हैं। बस फिर क्या था। रिबोजोम का पूरा ढांचा सामने आ गया। इसके अलावा यह भी पता चला कि जीन में मौजूद सूचनाओं को पढ़कर रिबोजोम, जो प्रोटीन बनाते हैं, उसमें कोई गलती क्यों नहीं होने पाती। यदि कोई गलती होती भी है, तो वह एक लाख में कोई एक। रामकृष्णन ने इस तत्व की भी पहचान कर ली, जो इस बात पर निगरानी रखता है कि जीन में स्थित सूचनाओं को पढऩे व उसके अनुकूल प्रोटीन के निर्माण में कोई गलती न होने पाए। इस खोज की भविष्य में असीमित संभावनाएं हैं। तात्कालिक संभावना तो नई एंटीबायोटिक्स की डिजाइनिंग की है। बहुत से बैक्टीरिया कई एंटीबायोटिकों के अवरोधी बन गये हैं। उनके लिए भी नये एंटोबायोटिक तैयार हो सकते हैं। फिर जैव प्रोटीनों के निर्माण की विशाल दुनिया का यूं ही असीमित उपयोग हो सकता है।साहित्य का नोबेल पुरस्कार इस वर्ष रोमानिया की कम्युनिस्ट तानाशाही में जन्मीं जर्मन लेखिका हेर्ता मुलर को दिया गया है। रोमानिया के शासक निकोलई सिजेस्क्यू के दौर में वहां अल्पसंख्यक जर्मन समुदाय की क्या हालत थी, उनकी जिंदगी कितनी मुश्किलों से भरी थी, इसका अत्यंत सजीव चित्रण हेर्ता मुलर ने अपने साहित्य में किया है। स्वीडिश एकेडमी के स्थाई सचिव पीटर इंग्लैंड ने मुलर के अत्यंत संवेदनशील काव्य एवं उन्मुक्त गद्य की सराहना करते हुए कहा है कि लेखिका ने तत्कालीन रोमानिया में पिसते अल्पसंख्यक समुदाय के जीवन की विडंबनाओं का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।इस बार शांति पुरस्कार को लेकर सर्वाधिक विवाद खड़ा हुआ। स्व्यं वह व्यक्ति भी हैरान था, जिसे यह पुरस्कार मिला। अमेरिकी राष्टï्रपति बराक हुसैन ओबामा को उनके सेक्रेटरी ने सुबह के 6 बजे जगाकर यह सूचना दी कि उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गयी है। वह यह सूचना पाकर चकित हो गये। बाद में उन्होंने मीडिया के सामने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मैं अपने को इस पुरस्कार के योग्य नहीं मानता। मेरी उनके साथ कोई बराबरी नहीं है, जिन्हें अपसे पहले यह पुरस्कार मिला है। फिर भी मैं यह सम्मान स्वीकार करता हूं। लोग यह पूछ रहे हैं कि ओबामा ने आखिर किया क्या है, जिसके लिए उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। अभी उनको अमेरिका का राष्टï्रपति पद संभाले भी मुश््िकल से दस महीने हुए हैं। उन्होंने बातें अवश्य अब तक बहुत की हैं, लेकिन उनकी उपलब्धि क्या है । बात किसी हद तक सही है, लेकिन पुरस्कार की चयन समिति के दृष्टिïकोण को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। अपने दस महीने के कार्यकाल में ओबामा ने जो संभावनाएं जगायी हैं, वे किन्हीं उपलब्धियों से कम नहीं हैं। ओबामा दूसरे अश््वेत अमेरिकी हैं, जिन्हें शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। पहला नाम मार्टिन लूथर किंग जूनियर का, जिन्हें 1964 में 35 वर्ष की आयु में यह सम्मान दिया गया था। एक अश््वेत पूरे अमेरिका की श््वेत आबादी के दिलों पर कब्जा करके उनका समर्थन प्राप्त कर ले, यह अपने आप में एक उपलब्धि है। फिर ओबामा ने राष्टï्रपति पद संभालते ही सबसे पहले विश््व की मुस्लिम आबादी के साथ अमेरिका के मैत्रीपूर्ण संबंधों की शुरुआत की और यह संदेह दूर करने की कोशिश की कि आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी संघर्ष कोई इस्लाम के खिलाफ घोषित संघर्ष नहीं है। उन्होंने सत्ता हासिल करते ही इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की घोषणा की। पूर्व राष्टï्रपति बुश द्वारा यूरोप में मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली स्थापित करने की घोषणा के कारण रूस के साथ जो तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गयी थी, ओबामा ने उसे शांति किया और मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली कायम करने का निर्णय रद्द कर दिया। उन्होंने ईरान के साथ भी वार्ता की पहल की और उस पर मंडरा रहे अमेरिकी हमले के खतरों को दूर किया और ओबामा की सबसे अधिक प्रशंसनीय पहल जो थी, वह यह कि उन्होंने पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का आह्वान किया। वह पहले अमेरिकी राष््ट्रपति हैं, जिन्होंने दुनिया को पूरी तरह परमाणु अस्त्रों से मुक्त करने का विचार सामने रखा है। यद्यपि यह सभी जानते हैं कि यह कार्य इतना आसान नहीं है, लेकिन अब तक पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण में सबसे बड़ी बाधा अमेरिका को ही माना जाता था, लेकिन अब अमेरिका ही इसका प्रस्ताव कर रहा है। वास्तव में विश््व के प्रति अमेरिकी दृष्टिïकोण विश््व शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ओबामा की अभी कोई उपलब्धि सामने नहीं है, लेकिन उनके शांतिपरक विचारों के कारण भविष्य की संभावनाएं बहुत अधिक हैं। यह नोबेल शांति पुरस्कार अब उनके ऊपर एक नैतिक दबाव का भी काम करेगा। उन्हें अपने को इसके अनुकूल सिद्ध करना होगा। संभव है इसके साये में वह शांति के लिए और बेहतर कार्य कर सकें।कुल मिलाकर इस वर्ष के सारे नोबेल पुरस्कार मानवता के श्रेष्ठïतम हित में दिये गये हैं। पुरस्कार हर वर्ष दिये जाते हैं और अपने-अपने क्षेत्र की श्रेष्ठïतम उपलब्धियों के लिए दिये जाते हैं। किंतु इस बार के सारे पुरस्कार ऐसे हैं, जिनका प्रत्यक्ष लाभ देखा जा सकता है।

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