बुधवार, 26 जून 2013




भारतीय जनता पार्टी के नेता तथा राज्य सभा सदस्य राम जेठमलानी ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैं जो शुद्ध अज्ञानतावश इतिहास पुरुषों या सांस्कृतिक परंपरा के स्थापित प्रतीकों के विरुद्ध आए दिन ऐसी बेतुकी  और अनर्गल प्रतिक्रिया करते रहते हैं जिससे उन पुरुषों और प्रतीकों का तो कुछ नहीं बिगड़ता किंतु संबंधित समाज में नाहक ऐसा क्षोभ उत्पन्न होता है, जिससे अशांति पैदा होने की संभावना रहती है|
गुरुवार ८ नवंबर को स्त्री-पुरुष संबंधों पर आधारित एक पुस्तक का अनावरण करते हुए जेठमलानी ने टिप्पणी की कि ‘राम अच्छे पति नहीं थे| मैं बिल्कुल उन्हें पसंद नहीं करता| बस एक मछुआरे ने कुछ कह दिया और उन्होंने उस बेचारी औरत को वनवास दे दिया|’ उन्होंने लक्ष्मण पर भी टिप्पणी की और कहा कि वह तो ‘और बुरे थे|’ जब सीता का अपहरण हुआ और राम ने उनसे उसे ढूँढ़ने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि वह उनकी भौजाई है और उन्होंने कभी उनका चेहरा नहीं देखा इसलिए वह उन्हें पहचान नहीं सकते|फ मतलब जेठमलानी की दृष्टि में लक्ष्मण ने सीता की खोज में जाने से इनकार कर दिया|
अब उनकी इस टिप्पणी से साफ जाहिर है कि उन्हें रामकथा का कुछ भी पता नहीं है और उन्होंने सुनी सुनाई बातों को लेकर अपने ढंग से उस पर टिप्पणी कर दी| ये तो बेचारे तथाकथित हिंदू इतने सीधे सादे और सहिष्णु होते हैं कि उन्होंने मुस्कराकर टाल दिया, केवल थोड़ी सी प्रतिक्रिया इधर-उधर अखबारों में सामने आई| किसी दूसरे मजहबी समुदाय के शीर्ष पुरुष पर उन्होंने ऐसी टिप्पणी की होती तो अब तक लेने के देने पड़ जाते| शायद इस तरह की सहिष्णुता का ही यह परिणाम है कि जेठमलानी जैसे लोग बिना जाने समझे हुए भी जबान चलाने में कोई परहेज नहीं करते|
यह जरूरी नहीं कि वाल्मीकि या तुलसी के महाकाव्यों में वर्णित राम के जीवनादर्श आज के जीवन के भी आदर्श हों, किंतु यदि आपको उनके आदर्शों पर कोई टिप्पणी करनी हो तो पहले उन काव्यों को ठीक से पढ़ना  और उसके चरित्रों को ठीक से समझना चाहिए, उसके बाद भी उस पर कोई तार्किक टिप्पणी तभी करनी चाहिए जब वह लोकहित में आवश्यक हो| अन्यथा केवल ज्ञान प्रदर्शन या आधुनिकता के मिथ्या दंभ में कोई विरोधी टिप्पणी नहीं करना चाहिए| जेठमलानी बड़े वकील हो सकते हैं किंतु इसका मतलब यह नहीं कि वह इतिहास, संस्कृति, पुरा कथाओं या प्राचीन महाकाव्यों के चरित्रों पर टिप्पणी करने के अधिकारी बन गए| उन्हें जब कथासूत्र तक का पता नहीं है फिर वह कैसे कोई टिप्पणी कर सकते हैं| उन्हें इतना तो सोचना चाहिए था कि उनके पिता ने उनका नाम राम जेठमलानी क्यों रखा| यदि राम उन्हें इतने ज्यादा नापसंद है तो उन्हें पहले अपना नाम बदल लेना चाहिए|
खबर है कि कानपुर में एक सूचनाधिकार कार्यकर्ता (आरटीआई एक्टिविस्ट) संदीप शुक्ल ने कानपुर के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में भारतीय दंडसंहिता की धारा २९५ ए तथा २४८ के अंतर्गत मुकदमा दायर किया है कि जेठमलानी ने उनकी तथा और बहुत से लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है| यहॉं यह उल्लेखनीय है कि देश के कानून में धार्मिक (मजहबी) भावना को आहत करना तो दंडनीय अपराध है कि  किंतु सांस्कृतिक भावनाओं एवं संस्कृति के पात्रों को कोई भी कहीं भी बेधड़क चोट पहुँचा सकता है| इसलिए यदि राम के विरुद्ध टिप्पणी के लिए अदालत में जाना है तो मजहबी भावनाओं का सहारा लेना ही पड़ेगा| वास्तव में राम कोई मजहबी देवता नहीं है| वाल्मीकि रामायण में उन्हें ङ्गविग्रहवान धर्मफ (रामोविग्रहवान धर्मः) कहा गया है| यहॉं धर्म का अर्थ है आचार व व्यवहार के श्रेष्ठ नियम| इतिहास पुरुष राम राजा हैं, साधारण नागरिक नहीं| राम का राज्य (भले वह कल्पित हो) आज तक एक आदर्श राज्य (आइडियल स्टेट) के रूप में इसीलिए प्रतिष्ठित है कि वहॉं कानून या न्याय का राज्य था और राजा के लिए प्रजा उसके परिवार से ऊपर थी| धोबी का प्रकरण काव्य का सत्य है, इतिहास का नहीं| सीता के विरुद्ध प्रवाद का प्रकरण तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के एक सबसे निचले वर्ग के माध्यम से इसलिए उठाया गया कि एक राजा को अपनी प्रजा के सबसे अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की भावनाओं को अपने परिवार तो क्या अपनी प्रियपत्नी और अपने बच्चों के ऊपर भी तरजीह देना चाहिए| आज के अपराधशास्त्र के पंडितों को यह बात जरा मुश्किल से समझ में आएगी या शायद कभी समझ में न आए| इसलिए समाज को चाहिए कि ऐसे अज्ञानियों की किसी टिप्पणी को अधिक तूल न दे और उन्हें माफ कर दे|

कोई टिप्पणी नहीं: